(ग़रज़ क़सम है) कि बेशक इन्सान अपने परवरदिगार का नाशुक्रा है
और यक़ीनी ख़ुदा भी उससे वाक़िफ़ है
और बेशक वह माल का सख्त हरीस है
तो क्या वह ये नहीं जानता कि जब मुर्दे क़ब्रों से निकाले जाएँगे
और दिलों के भेद ज़ाहिर कर दिए जाएँगे
बेशक उस दिन उनका परवरदिगार उनसे ख़ूब वाक़िफ़ होगा
खड़खड़ाने वाली
वह खड़खड़ाने वाली क्या है
और तुम को क्या मालूम कि वह खड़खड़ाने वाली क्या है
जिस दिन लोग (मैदाने हश्र में) टिड्डियों की तरह फैले होंगे
और पहाड़ धुनकी हुई रूई के से हो जाएँगे
तो जिसके (नेक आमाल) के पल्ले भारी होंगे
वह मन भाते ऐश में होंगे
और जिनके आमाल के पल्ले हल्के होंगे
तो उनका ठिकाना न रहा
और तुमको क्या मालूम हाविया क्या है
वह दहकती हुई आग है
कुल व माल की बहुतायत ने तुम लोगों को ग़ाफ़िल रखा
यहाँ तक कि तुम लोगों ने कब्रें देखी (मर गए)
देखो तुमको अनक़रीब ही मालुम हो जाएगा
फिर देखो तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा
देखो अगर तुमको यक़ीनी तौर पर मालूम होता (तो हरगिज़ ग़ाफिल न होते)
तुम लोग ज़रूर दोज़ख़ को देखोगे
फिर तुम लोग यक़ीनी देखना देखोगे
फिर तुमसे नेअमतों के बारें ज़रूर बाज़ पुर्स की जाएगी